૨૧/૦૬/૨૦૨૦ રવિવાર
આજે ‘વિશ્વ યોગ દિવસ.’
‘યોગ વિદ્યા’ એ શરીર અને આત્માનું સંયોજન કરતી કડી છે, જે આપણને મહર્ષિ પતંજલિ તરફથી મળેલી અમૂલ્ય ભેટ છે.
ભારતના માનનીય પ્રધાનમંત્રીશ્રી નરેન્દ્ર મોદીએ સંયુકત રાષ્ટ્રસંઘની ૬૯મી સામાન્ય સભામાં ૨૭ સપ્ટેમ્બર ૨૦૧૪ના રોજ વક્તવ્ય આપતા જણાવ્યું હતું કે, ૨૧મી જૂનનો દિવસ એ ઉત્તરીય ગોળાર્ધમાં સૌથી લાબો દિવસ છે. આ દિવસને ‘વિશ્વ યોગ દિવસ’ તરીકે મનાવવાનું સૂચન કર્યું. આ અંગે સંયુક્ત રાષ્ટ્ર દ્વારા ઠરાવ પસાર કરવામાં આવ્યો.
પ્રધાનમંત્રીશ્રીએ એમના સંદેશમાં જણાવ્યું હતું કે,
‘યોગ એ પ્રાચીન ભારતીય પરંપરા દ્વારા મળેલી એક અમૂલ્ય ભેટ છે. તેમાં મન અને શરીર; વિચાર અને ક્રિયા; સંયમ અને પરિપૂર્ણતા વચ્ચે રહેલી એકતા છે; જે મનુષ્ય અને પ્રકૃતિ વચ્ચેની સંવાદિતાનું મૂળરૂપ છે, એ આરોગ્ય અને કલ્યાણનો સમગ્ર દૃષ્ટિકોણ છે. ચાલો, આપણે એક આંતરરાષ્ટ્રીય યોગ દિવસ અપનાવવા તરફ કાર્ય કરીએ.”
૨૦૧૩માં ‘વૈશ્વિક પરિપ્રેક્ષ્યમાં ભારતીય શિક્ષણની પ્રસ્તુતતા’ વિષય પર રાષ્ટ્રીય પરિસંવાદનું આયોજન થયું હતું, તેમાં યોગ વિશે જ એક અભ્યાસ લેખ પ્રસ્તુત કર્યો હતો. આજે ‘વિશ્વ યોગ દિવસ’ નિમિત્તે તેને અહીં રજૂ કરું છું.
સાભારઃ https://gu.vikaspedia.in/health/a86aafac1ab7/aafacba97-1/ab5abfab6acdab5-aafacba97abe-aa6abfab5ab8
योग – वैयक्तिक से वैश्विक मूल्यों के विकास का प्रमुख आधार स्तंभ*
सारांशः व्यक्ति से लेकर वैश्विक मूल्य की और प्रयाण करना यही मानव जीवन का लक्ष्य है। भारतीय और पश्चिमी चिंतना मानवीय जीवन को कैसे मूल्यगत जीवन के लिये अभिमुख कर सकते है उसकी तुलना करते हुए यही प्रतीत होता है की भाषा, काल और स्थल सत्य के मूलगत स्वरूप को एक ही सारभूत तत्व को अभिव्यक्त करते है। इस अभ्यास लेख में उपनिषद, अब्राहम मेस्लो, ऑलपॉर्ट, वेर्नन और दूबे के अभ्यासों के आधार पर मानवीय मूल्यों के बारे में भारतीय और पश्चिमी चिंतना में समाहित समान तत्त्वों को उजागर करने का प्रयास किया गया है। और योग शिक्षा कैसे वैयक्तिक मूल्य से लेकर वैश्विक मूल्यो का विकास करने में सहयोगी होता है उसका चयन करने का प्रयास किया गया है। योग को आज सारे विश्व में जिस तरह से लोग अपना रहे है यही उसे वैयक्तिक से वैश्विक मूल्यों के विकास का आधार स्तंभ बनाता है। |
*भारतीय शिक्षा शोध संस्थान प्रेरित गुजरात विश्व विद्यालय एवं विद्याभारती, गुजरात प्रदेश द्वारा ‘वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारतीय शिक्षा की प्रासंगिकता’ विषय पर दिनांक ११ फरवरी २०१३ को आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद में शोध पत्र प्रस्तुत किया था।

प्रास्ताविकः
मनुष्य समाज की इकाई है। समाज राष्ट्र की इकाई है तथा विभिन्न राष्ट्रों को मिलाने पर विश्व का निर्माण होता है। वैश्विक मूल्य की अवधारणा में हम उसे वैश्विक मूल्य मानेंगे, जो मानव की लोक यात्रा में उसको व्यक्ति से समष्टि तक ले जाने में सक्षम होता है। इस दृष्टि से वैश्विक मूल्य वे मूल्य या मूल्यों का समूह है जो मानव के प्रत्येक पक्ष पर प्रभाव डालने में सक्षम होता है तथा जो उसके व्यक्तित्व एवं अस्तित्व के सभी पक्षों को पल्लवित कर उसे अस्तित्व के चरम संभावना तक ले जाने में सक्षम हो।
इस अभ्यास लेख में योग शिक्षा कैसे वैयक्तिक मूल्य से लेकर वैश्विक मूल्य का आधार स्तंभ है उसका चयन करने का प्रयास किया गया है। मानवीय मूल्यों के बारे में भारतीय और पाश्चात्य द्रष्टिकोण में समाहित समान विचारों को देखने का प्रयास किया गया है। योग मानवीय संभावनाओं को किस प्रकार उसकी अंतिम परिणति को प्रदान कर सकता है उसे भी समजाने का प्रयास किया गया है।
मानव अस्तित्व का विश्लेषणः भारतीय द्रष्टिकोणः
तैतरीय उपनिषद् में मानवीय अस्तित्त्व को पंचकोश में विभाजित किया है। जो इस प्रकार है।
- अन्नमय कोश – शारीरिक विकास
- प्राणमय कोश – प्राणिक विकास
- मनोमय कोश – मानसिक विकास
- विज्ञानमय कोश – बौध्दिक विकास
- आनन्दमय कोश – आध्यात्मिक विकास
शरीर, प्राण, मन, बुध्दि, आत्मा इन पांचो के विकास से व्यक्ति का समग्र विकास होता है। वह व्यक्ति से व्यक्तित्व बनता है। यह अस्तित्त्व मानवीय मूल्यों को अभिव्यक्त करता है। शारीरिक से लेकर आनंदमय कोश एक तरह से भौतिक से लेकर आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति प्रयाण है।
मानव अस्तित्व का विश्लेषणः पाश्चात्य द्रष्टिकोणः
चाहे भाषा बदल जाए, काल बदल जाए, ज्ञान की अंतिम श्रेणी में निष्कर्ष के सूर मिल जातें है। उपनिषद के उपरोक्त वचनो कों यदि हम अब्राहम मेस्लो (१९४३) के प्रेरणा के सिध्धांत के साथ तुलना करें तो हमें उपनिषद के मानव विकास की श्रेणी अवश्य दिखाइ देगी। मेस्लो ने मानव अस्तित्व को उनकी जरूरियातों के अनुसार वर्गीकृत करने का प्रयास किया है। जो शारीरिक से शुरु होकर स्व साक्षात्कार की ओर बढती जाती है। उसका विवरण सारणी के रूप में इस प्रकार किया गया है।
सारणी – १ अब्राहम मेस्लो की मानव आवश्यकताओं की श्रेणी

प्रत्येक व्यक्ति के लिये कुछ न कुछ प्राप्तव्य होते हैं जिन्हें वह अपने जीवन में पाना चाहता है। इनकी प्राप्ति उसके अस्तित्व के लिये अनिवार्य हो सकती है – जैसे भोजन, वस्त्र, आवास आदि। अथवा कुछ ऐसे भी मूल्य हो सकते हैं जो कि उसे मानसिक सन्तोष, सुख आदि की अनुभूति करा सकते हैं इन्हें मानसिक या मनोदैहिक मूल्य कह सकते हैं। कुछ अन्य वे उच्च मूल्य हो सकते हैं जो उसके व्यक्तित्व को परिमार्जित करते हैं जिससे उसका जीवन विशिष्ट सार्थकता को प्राप्त कर सके जैसे उदारता, ज्ञानार्जन, सत् प्रवृत्तियाँ आदि। मूल्यों की यही खोज मानवीय अस्तित्व के चरम को खोजने का प्रयास करती है इसे ही आध्यात्मिक मूल्य कहा गया है। वस्तुतः विश्व में मानवीय मूल्यों का तानाबाना इन्हीं उपरोक्त मूल्यों के इर्द गिर्द घूमता रहता है।
अन्य मनोविज्ञानीओं ने भी मानव अस्तित्व का अभ्यास करने का प्रयास किया है, उसमें मूल्यों के आधार पर मानव के विकास का चयन भी हुआ है। ऑलपॉर्ट, वेर्नन (१९३१) के अभ्यासों ने मूल्यों को निम्न प्रकारों में विभाजित किया है।
- सैधांतिक -Theoretical: Interest in the discovery of truth through reasoning and systematic thinking.
- आर्थिक – Economic: Interest in usefulness and practicality, including the accumulation of wealth.
- सौंदर्यबोधक – Aesthetic: Interest in beauty, form and artistic harmony.
- सामाजिक – Social: Interest in people and human relationships.
- राजनितिक – Political: Interest in gaining power and influencing other people.
- धार्मिक – Religious: Interest in unity and understanding the cosmos as a whole.
ऑलपॉर्ट, वेर्नन के मतानुसार व्यक्ति इस छह प्रकार की मूल्यो में आंदोलित होता रहता है। इस प्रकार चाहे भारतीय चिंतना हो या पश्चिमी भौतिक से लेकर सत्य की खोज की तरफ मानवी यात्रा करता रहता है। योग वैयक्तिक से लेकर वैश्विक मूल्य का विकास कर सकता है उसके वैज्ञानिक सोपान प्रस्तुत किये गये है। उसका चयन इस प्रकार है।
योग की वैश्विक मूल्य के रूप में भूमिकाः
योग भारतीय चिरन्तन परम्परा की प्रायोगिक अभिव्यक्ति है। पिण्ड से ब्रह्माण्ड तक की यात्रा को समाहित करते हुये योग मूलतया आध्यात्मिक लक्ष्य या प्राप्तव्य की पूर्ति कराता है। साथ ही योग अपने अनुपालन से शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य एवं आनन्द, सामाजिक समरसता एवं विश्व कल्याण के भाव को भी साधक मे जगा देता है।
दूबे (२००८) ने योग चार प्रकार के मूल्यों, वैयक्तिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और आंतर राष्ट्रीय विकास से किस तरह से जूडा है वो निर्देशित किया है । जिसका सारणी में विवरण इस प्रकार किया गया है।
सारणी – २ योग की विभिन्न मूल्यों के विकास में भूमिकाः

दूबे (२००८) ने पतञ्जलि-योगसूत्र में योग के स्वरूप एवं प्राप्तव्यों का विश्लेषण एवं विवेचन इस प्रकार प्रस्तुत किया है।
सारणी – ३ मूल्य आधारित शिक्षा में अष्टांग योग द्वारा मूल्य के विकास की संभावना
क्र. | The Limbs of Yoga योग के अंग | Interpretation of the limbs of Yoga in Value Oriented Education मूल्याधारित शिक्षा में योगांग मूल्य के रूप में | P | S | N | In |
1. | सत्य | सार्वभौमिक मूल्य | Y | Y | Y | Y |
2. | अहिंसा | सार्वभौमिक मूल्य | Y | Y | Y | Y |
3. | अस्तेय | सामाजिक मूल्य | Y | Y | ||
4. | अपरिग्रह | सामाजिक भेद-भाव को कम करने वाला, समानता लाने वाला, समाजवाद को पल्लवित करने वाला | Y | Y | ||
5. | ब्रह्मचर्य | वैयक्तिक मूल्य | Y | |||
6. | शौच | आन्तरिक एवं बाह्य शौच – वैयक्तिक मूल्य मानसिक एवं शारीरिक शौच – सामाजिक मूल्य भी | Y | Y | ||
7. | सन्तोष | मानसिक मूल्य, सामाजिक, राष्ट्रिय-अन्तर्राष्ट्रीय समरसता के लिये भी आवश्यक, उपभोक्तावाद के शमन के लिये अनिवार्य, शान्ति का पूर्व आपेक्षित मूल्य | Y | Y | Y | |
8. | तप | वैयक्तिक, किन्तु दृढ़ता एवं क्षमता बढ़ाने की दृष्टि से सार्वभौमिक मूल्य | Y | |||
9. | स्वाध्याय | अनुचिन्तन के लिये अनिवार्य, अनुचिन्तन सहिष्णुता एवं आपसी समझ के लिये अपिरहार्य है। | Y | Y | Y | |
10. | ईश्वर प्रणिधान | आध्यात्मिक मूल्य, आस्था का जनक | Y | |||
11. | आसन | शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के मूल्य | Y | Y | Y | |
12. | प्राणायाम | जीवनशक्ति, कर्मशक्ति को बढ़ाने वाले ऊर्जामयता के मूल्य | Y | Y | Y | |
13. | प्रत्याहार | त्याग एवं संयम के मूल्य | Y | Y | Y | Y |
14. | धारणा | संकेन्द्रण | Y | |||
15. | ध्यान | शान्ति, सौहार्द्र के मूल्य | Y | Y | Y | Y |
16. | समाधि | परम मूल्य, आध्यात्मिक पूर्णीकरण का मूल्य | Y |
संज्ञाः P (Parsonal – वैयक्तिक ) S ( Social – सामाजिक ) N (National – राष्ट्रीय ) In(International – आंतर राष्ट्रीय) Y (Yes – हा )
योग सांगोपाग सर्वांगीण विकास का दूसरा नाम है। वास्तव में जो भी सारयुक्त, श्रेष्ठ, एवं श्रेयस है उसी से जुड़ना योग है। इसे ही आत्म तत्त्व आदि विभिन्न नामों से अभिहित किया गया है। इस रूप में योग आध्यात्मिक पूर्णीकरण तक का लक्ष्य रखता है। इसके अतिरिक्त आसन एवं प्राणायाम के अभ्यास के रूप में योग में शारीरिक अभ्यास एवं स्वास्थ्य के मूल्य समाहित हैं। यम एवं नियमों के रूप में इसमें सामाजिक-राष्ट्रिक-अन्तराष्ट्रिक मूल्य समाहित हैं। प्रत्याहार, धारणा एवं ध्यान न केवल मानसिक दृढ़ता उत्पन्न करते हैं वरन् जागरूकता, संकेन्द्रण की क्षमता, दक्षता, भावनात्मकता को भी प्रबल बनाते हैं। इस प्रकार योग में शारीरिक, मानसिक, समाजिक, राष्ट्रिय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सभी मूल्यों के घटक किसी न किसी मात्रा में सम्मिलित होते हैं।
योग का लक्ष्य उसकी परिभाषाओं से ध्वनित होता है –
योगश्चित्तवृत्ति निरोध।
समत्वं योग उच्यते।
योगः कर्मसु कौशलम्।
आदि योग में समत्व की बात है, कुशलता की बात है। यहाँ चित्तवृत्तयों के निरोध से आत्मस्वरूप में अवस्थित होने को कहा गया है। यम के अन्तर्गत वर्णित – सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपिरग्रह एवं ब्रह्मचर्य को पतञ्जलि सार्वभौम स्वरूप का वर्णित किया है अर्थात् ये सभी पर, सभी समयों में समान रूप से लागू होते हैं –
“जातिदेशकालसमयावछिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम् ”
– योगसूत्र, साधनापाद, सूत्र 31
उपसंहारः
वर्तमान में भी योग के प्रति जनाकर्षण एवं रूझान का सबल कारण यही है। चूँकि स्वास्थ्य एवं रोगरहितता देश, काल, जाति, धर्म की परिधि से ऊपर तथा सभी मानवों की समान आवश्यकता है अतः योग अपने इस स्वरूप में भी वैश्विक मूल्य की कसौटी पर खरा उतरता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) की वैश्विक संस्था यूनेस्को (UNESCO) की डेलर्स कमेटी के रिपोर्ट में आदर्शों के रूप में “learning : Treasure within” को वर्णित किया है| इस प्रकार उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर योग को वैयक्तिक विकास से वैश्विक मूल्य के विकास की ओर प्रस्थान करने के लिये प्रमुख स्तंभ है यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा।
संदर्भः
http://en.wikipedia.org/wiki/Maslow’s_hierarchy_of_needs
http://www.mantra.org.in/Yoga/myweb/yoga_practices_therapy_index.htm
http://wiki.answers.com/Q/What_is_Allport-_Vernon_classification_of_values
http://www.jkhealthworld.com/hindi_healthworld/?q=node/5168
http://hindi.awgp.org/?gayatri/sanskritik_dharohar/bharat_ajastra_anudan/yoga/yog_kya_hai/